शिक्षा पर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देने की आवश्यकता
डा. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सितम्बर 2, 2019 को लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेधावी सम्मान समारोह में वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य की प्रासंगिकता को साबित करते हुए कहा कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं हो सकता तथा शॉट कर प्राप्त सफलता कभी स्थायी परिणाम देने वाली नहीं हो सकती। वर्तमान में देखने में यह आ रहा है कि युवाओं व उनके अभिभावकों ने सफलता के लिए शॉर्टकट अपनाने शुरू कर दिये है तथा इन शॉर्टकटों में भी वर्तमान राजनीति भी घुस गई किसी है तथा देश के राजनीतिक लिए दलों के द्वारा सामाजिक न्याय का नारा देकर बनाई गई सरकारें अपेक्षित न्याय नहीं कर सकी हैं। उनके द्वारा उठाये गये कदमों से शिक्षा व परीक्षा प्रणाली को स्तरहीन करके खोखला कर दिया है। उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री माननीय कल्याण सिंह ने अपने कार्यकाल में परीक्षा में नकल को रोकने के लिए कड़े कदम उठाये थे तो विपक्ष ने इसका विरोध कर युवाओं को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इसका परिणाम यह हुआ कि युवा साल किसी दर साल कक्षाओं में नहीं गये रखा और परीक्षा के दौरान सपुस्तक परीक्षा नकल को प्रेरित हुए। इस रही प्रकार की सफलता पाये युवा स्वयं किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के कर लिए सर्वथा निरर्थक, शिक्षाहीन नालायकव संस्कारहीन पाये गये और युवा प्रदेश में नकल से पास हुए स्नातक व स्नातकोत्तर बेरोजगारों की एक फौज खडी हो हो गई। भ्रष्टाचार के चलते इस व प्रकार के कुछ युवा विभिन्न स्थानों पर शिक्षक की नौकरी युवाओं भी पाने में सफल हए जो रूपये कक्षाओं में गैस पेपर ले जाकर उनकी सहायता से पढ़ाने में भी दिखाने कोई कोताही नहीं करते जिससे कोढ में खाज हो गई और युवा वर्ष पीढी का भविष्य और विश्वविद्यालय अंधकारमय हो गयानकलविहीन परीक्षा की शुचिता को किसी भी तरह ताक पर नहीं रखा जा सकता। सपुस्तक परीक्षा प्रणाली को लेकर हो रही राजनीति देश, समाज व लिए लिए स्वयं युवाओं का ही सत्यानाश कर रही है। उससे उदंड, शिक्षक नालायक, अखंड व अज्ञानी युवा वर्ग की एक जमात ही खड़ी हो गई है। सरकारी व गैर सरकारी नौकरियों के लिए हो रही प्रतियोगिताओं में नकल व मुन्नाभाई बडी मात्रा में नजर आने लगे है। बड़े बड़े गैंग युवाओं व अभिभावकों से लाखों रूपये हड़प कर उन्हें नौकरी में चयनित करवाने का सपना दिखाने लगे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के प्रयासों से गत वर्ष की अधिकतर माध्यमिक व विश्वविद्यालय स्तर की परिक्षाएं नकलविहीन सम्भव हो सकी है तथा परीक्षा की शुचिता स्थापित हो सकी है। लाखों की संख्या में छात्र परीक्षा छोड़ने के लिये मजबूर हो गये वरना तो इन छात्रों के स्थान पर मुन्ना भाई परीक्षा देते। प्रत्येक बच्चे व युवा के सर्वांगीण विकास की जिम्मेदारी राष्ट्र तथा समाज की होती है। प्रत्येक बच्चे व युवा को ज्ञान, मानवीय संवेदनाएं, कौशल व मूल्यों को सिखने व सिखाने के लिए उचित वातावरण, सहयोग व मार्गदर्शन मिल सके। इसके लिए समर्पित, योग्य, प्रतिबद्ध, प्रशिक्षित तथा उत्साही शिक्षक की आवश्यकता होती है। ऐसे शिक्षक आयेंगे कहां से जब तक कि स्कूल व कालेज का वातावरण ठीक नहीं होगा। छात्रों का शिक्षण उच्च योग्यता वाले समर्पित प्रशिक्षित शिक्षकों के द्वारा ही होना चाहिए। अध्यापकों व गुरुओं के संबंध में प्रत्येक भाषा, देश व सभ्यता में सदैव ही सर्वोत्तम कहा जा चुका है परन्तु व्यवहार में स्थिति एकदम उलट हो गई है जिससे अनेक प्रकार की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समस्याएं खडी हो गई हैं। किसी भी देश के लोगों का स्तर वहां के अध्यापकों के स्तर देने की आवश्यकता से ऊंचा नहीं हो सकता। किसी भी देश की प्रगति और विकास की गति व गुणवत्ता वहां के अध्यापकों की कार्यकुशलता, प्रतिबद्धता और उनके द्वारा स्वंय के जीवन में उतारी गई नैतिकता पर निर्भर करती है। वर्तमान में प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक के शिक्षकों में अकर्मयता, अज्ञानता, अनैतिकता देखी जा रही है। समय पर कक्षा में नहीं पहुंचना, कक्षाओं में पहुंच कर स्तरहीन शिक्षा देना, युवाओं का मार्गदर्शन नहीं करना व कई कई दिन तक संस्था से गायब रहना, फिर संस्था में आकर अपनी किसी भी प्रकार से उपस्थिति लगाना और अपने वरिष्ठ साथियों व प्राचार्य के साथ बदतमीजी व अभद्रता करना आम बात होती जा रही है। आपस में व युवाओं के साथ भी उनकी भावभंगिमा व भाषा का स्तर बहुत गिरा हुआ होता है। अध्यापक से एक अपेक्षा तो समाज तथा प्रत्येक व्यक्ति को होती है। उनका आचरण समाज के लिए अनुकरणीय होना ही चाहिए क्योंकि वे राष्ट्र की भविष्य की पीढी का निर्माण करते हैं। युवा पीढ़ी उनको राष्ट्र के निर्माण के आधार स्तम्भ के रुप में देखती है। वे ही राष्ट्र निर्माण की संरचना को मजबूती देते हैं। स्कूलों व कालेजों को स्ववित्त व्यवस्था में लाकर सरकार ने एक प्रकार से शिक्षा के प्रति उत्तरदायित्व से मुंह ही मोड़ लिया है क्योंकि ऐसे स्कूल व कालेजों की स्थापना भ्रष्टाचार से ही शुरू होती हैवे मात्र दुकान व व्यवसाय तथा शिक्षा एक प्रकार का उद्योग ही बन कर रह गये हैं। छात्रों को कुछ भी सुविधाएं न देकर उचित पठन-पाठन का वातावरण नहीं दे पाते हैं। योग्य शिक्षक की योग्यता यह होती है कि जो व्यक्ति कम से कम वेतन में उनका गुलाम बन कर उनके स्कूल में आ जाये। जिन शिक्षकों को प्रमाण पत्र व सम्बद्ध उच्च संस्था के अनुमोदन के आधार पर नौकरी पर रखा जाता है, वे गायब होते हैं। उनके स्थान पर स्तरहीन अयोग्य शिक्षकों को कक्षाओं में भेजा जाता है। वर्ष में 5 से 8 महीनों तक का वेतन उन्हें दिया जाता है। सुबह 9 बजे से सायं चार-पांच बजे तक उनसे शिक्षण व अन्य कार्य लिया जाता है।